Friday, January 30, 2009

पर्यावरण व्यवस्था शास्त्र ( इन्विरोंमेंट मैनेजमेंट सिस्टम)

पर्यावरण = परि+आवरण, परि अर्थात विशेष या असाधारण और, आवरण अर्थात सुरक्षा कवच। परिश्रम, परित्याग, में 'परि' शब्द का अर्थ 'विशेष' है। पर्यावरण वह विशेष सुरक्षा कवच है, जिसे हम देख नही सकते जबकि वह असाधारण है। यदि यह कवच हट जाए तो सभी प्राणी जिसमें मानव जाति भी है, वह समाप्त हो जायगा और लोग बीमारी, भूख और प्रकृति की आपदा से मर जायेंगे।
मानव सभी प्राणियों में सबसे खतरनाक है। इसलिए उसके कार्य या उद्योग से हुए प्रदूषण, प्रकृति के स्वभाव द्वारा शुद्ध नही किए जा सकते। इसी प्रदूषण से पर्यावरण को खतरा है।
पर्यावरण के ५ तत्त्व होते है, प्रदूषण किसी एक या सभी में हो सकता है। इन पाँच तत्वों को प्रदूषण से बचाना चाहिए। छिति जल पावक गगन समीरा, पञ्च रचित यह अधम शरीरा - तुलसी दास
छिति -> मृदा या जमीनी प्रदूषण land contamination - रासायनिक तत्व जो पृथ्वी के जीवनी शक्ति को नष्ट कर देती है जिससे तरह तरह के प्राणी और वनस्पतियाँ नष्ट हो जाती हैं।
जल -> जल का प्रदूषण - water pollution पानी के श्रोत को पीने के लिए अनुपयोगी बना देती है और उसकी उपलब्धता कम हो जाती है.
समीरा -> वायु प्रदूषण, जिससे साँस लेना सम्भव नहीं होता और, गैसों के वातावरण में फैलने से पृथ्वी को सूर्य से प्राप्त गर्मी वापस नहीं जा सकती, और पृथ्वी गर्म हो जाती है.
गगन -> ध्वनि प्रदूषण, जिससे मनुष्य सुन नही सकता और बहरा हो सकता है, ध्यान से कोई काम नहीं किया जा सकता ।
पावक -> आग या हानिकारक विकिरण के नियंत्रित न रहने से आपत्काल की स्थिति हो जाती है।
पर्यावरण का प्रदूषण से बचाव
1. प्रकृति का अपना प्रयास
इन प्रदूषण को प्रकृति साफ़ करने की अपनी पूरी कोशिश करती है। समुद्र के सूक्ष्म जीव, जंगल, जंगली पशु पक्षी और पानी की नदियाँ, पर्यावरण को प्रदूषण और संताप को बचाती हैं। उद्योग, रहने के लिए घर और खेत के लिए इस्तेमाल में इनके नष्ट होने से प्राकृतिक आपदा, पर्यावरण में प्रदूषण की पूर्व सूचना हैं।
२। व्यवस्था के द्वारा प्रदूषण पर नियंत्रण
पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए, मनुष्यों के लिए केवल ५ निम्नलिखित रास्ते हैं.
2. १. प्रदूषण पैदा करने वाले कार्य न किए जाए। उस विकल्प की खोज करें जिससे उन वस्तुओं की खपत ही न हो या कम से कम हो, जिससे प्रदूषण पैदा होते हैं।
२.२। वह तकनीक प्रयोग हो, जिससे प्रदूषण न हो । इस लिए इस लक्ष्य से नए तकनीक को विकसित करें और अनुपयोगी तकनीक को इस्तेमाल न करें।
२.३। प्रदूषण पैदा होने के बाद, उसके हानिकारक तत्व को नियंत्रित किया जाय और उसको फैलने से रोका जाय। रोक कर उस तत्व को निष्प्रभावी कर, उस जगह डालें जहाँ खतरा कम से कम हो। जैसे रासायनिक तत्त्व, जैविक कचरा, या मल।
२.४। प्रदूषण से निकले हानिकारक तत्व का किसी अन्य उद्योग में इस्तेमाल हो, जिससे वह एक चक्र में बार-बार घूमता हुआ, स्थिर रहे। दीर्घकाल तक नष्ट न होने वाले जैसे धातु, प्लास्टिक, खनिज आइल या, ग्लास, मशीन के पुर्जे, या पैकिंग जो बार बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
२.५। प्रदूषण और गर्मी को सोखने वाले प्राकृतिक व्यवस्था जैसे जंगल, नदियाँ, वृक्षों, और मृत शरीर को खाकर सफाई करने वाले प्राणी जैसे गिद्ध, सूक्ष्म जीव, अन्य प्राणी को नष्ट न करें, और उसे बढायें।
३। उद्योग की व्यवस्था की वे ५ प्राथमिकता जिसमें प्रदूषण की सम्भावना होती है। १। कच्चे माल की खरीद से माल के बनने में होने वाले प्रदूषण, २। बने हुए माल की बिक्री और ग्राहकों को उसके इस्तेमाल से होने वाले प्रदूषण, और ३। निर्माण या ग्राहक सेवा के कार्य जो उसके अपने नियंत्रण में है। ४। निर्माण के दौरान उत्सर्जित कचरा/ अनुपयोगी पदार्थ, ५। भण्डारण और मशीनों के रख रखाव में असावधानी। प्रदूषण को दूर करने के लिए इन पाँचों पर अलग अलग ध्यान देना होगा।

1. उद्योग या कार्य में जो वस्तुएं इस्तेमाल के लिए खरीदी जाती हैं, उनके बनाने में जो भी प्रदूषण होता है, उसकी मात्रा खरीद के मात्रा से बढेगी। इसलिए, उस वस्तु की खरीद नही या कम करनी चाहिए जिस से प्रदूषण के बढ़ने और पर्यावरण को हानि पहुंचाने में योगदान न दें। जैसे बिजली जो कोयले को जला कर प्राप्त की जाती है, उस बिजली के अधिक इस्तेमाल से वायु में प्रदूषण बढेगा। कागज का इस्तेमाल करने से जंगलों को खतरा होता है, इसलिए, इन वस्तुओं के इस्तेमाल में कमी या वैकल्पिक व्यवस्था से पर्यावरण बचाया जा सकता है।

२। जो वस्तु बेचीं जाती है, और जिसके इस्तेमाल से प्रदूषण होता है, उसे कम करना चाहिए। पेट्रोल डीज़ल से चलने वाली गाड़ियों के निर्माता बेहतर तकनीक के प्रयोग से पर्यावरण को कम नुक्सान पहुँचा सकते हैं। जो लोग इन वस्तुओं को वापस ले लेते हैं वह ठीक है। बैटरी निर्माता या पैकिंग के समान इन वस्तुओं को वापस लेते हैं।

३। निर्माण के विभिन्न कार्यों में होने वाले प्रदूषण के श्रोत, उसकी मात्रा और पर्यावरण में उसके प्रभाव को नाप कर देखें। इस अध्ययन से हो रहे प्रदूषण को हानिरहित करने की एक योजना बना कर, उसे व्यवस्था में लाकर सही किया जाय।

४। रख-रखाव और भण्डारण में असावधानी से मशीनों से कच्छा माल पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता हैं, और यह प्रदूषण पैदा करता हैं। गाड़ियों में समय समय पर प्रदूषण की जांच की जाती हैं, और यदि रख रखाव में कमी होगी तो प्रदूषण बढ़ता हैं। बोइलेर में अधिक ऊर्जा की खपत होती हैं। भण्डारण में असावधानी से माल खराब हो जाता हैं और यदि वे पदार्थ ज्वलनशील हो, तो वह प्रदोषण के साथ ही खतरे का कारण भी बन जाता हैं। ख़राब हुए दवाएं, डीज़ल के भंडार इसके उदहारण हैं।

५। कचरा या उत्सर्जित पदार्थ जो उद्योग का मल हैं।

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